अभी तक हम यही सुनते-पढ़ते और अनुभव करते आए हैं कि चेहरा दिल का आईना होता है लेकिन क्या आपको मालूम है कि आपकी लिखावट आपके दिल, दिमाग, शरीर यानी पूरे व्यक्तित्व का आईना है? व्यक्तित्व, जो लिखावट से निकलता है, शब्द-दर-शब्द लिखने के अंदाज में. यह दावा है लिखावट विशेषज्ञों या ग्राफोलोस्ट्सि का. कुछ देशों में ग्राफोलोजी को विज्ञान का दर्जा दे दिया गया है. ग्रॉफोलोजी 7000 वर्ष पुरानी है, फिर भी विवादित बनी हुई है.
आज इस यांत्रिक युग में भी लिखावट अत्याधिक महत्वपूर्ण है. तभी तो कई बड़ी कम्पनियों में हस्तलिपि विश्लेषण चयन प्रक्रिया का एक महत्वपूर्ण अंग है. लिखावट में व्यक्तित्व के साथ-साथ, बुद्धि, गुणों, दोषों और बीमारियों का पता लगाया जा सकता है. ये बातें यद्यपि बेतुकी लग सकती हैं लेकिन ग्रॉफोलोजिस्ट्स इन बातों का दावा करते हैं.
एक अंग्रेज ग्रॉफोलोजिस्ट ‘एना कोरिया’ के अनुसार, ‘हाथ मस्तिष्क के लिए एक पेन की तरह है. मस्तिष्क हमारे शरीर और आत्मा में होने वाली ऐच्छिक और अनैच्छिक दोनांे प्रकार की गतिविधियों को संचालित करता है. वही जो जीवन भर हमारे व्यवहार और संवेदन को निर्देशित करता है, कागज को भी निर्देशित करता है. ग्रॉफोलोजिस्ट्स लिखावट की 200 से भी अधिक विशेषताओं का अध्ययन करते हैं.
यद्यपि कुछ लोग लिखावट को बीच बीच में बदलते रहते हैं फिर भी कुछ बुनियादी विशेषताएं होती हैं जो ग्राफोलोजिस्ट की पकड़ में आ जाती हैं. ग्राफोलोजिस्ट लिखावट के नमूनों को तीन क्षेत्रों में बांटकर अध्ययन करते हैं-ऊपरी क्षेत्रा मध्यक्षेत्रा और नीचे का क्षेत्रा. ऊपरी भाग का बुद्धि के साथ संबंध है, बीच के भाग का प्रतिदिन के क्रिया कलापों से और निचला भाग रोमांस ओर दबाई हुई प्रवृत्तियों जे जुड़ा है.
लिखावट में अक्षरों का ऊपरी भाग यदि ज्यादा प्रमुख और स्पष्ट जैसे इ, ई, ओ, औ की मात्राएं तो वह ऊंचे बुद्धि स्तर, महत्त्वाकांक्षा और अच्छी योजना निर्माण का संकेत है पर साथ ही अंह की समस्या को भी दर्शाता है.
लिखावट में बीच के भाग पर ज्यादा जोर देने वाले व्यक्ति दयालु, और संवेदनशील होते हैं परन्तु कभी-कभी ऐसी लिखावट में यदि ऊपर और नीचे का भाग छोटा हो तो लिखावट व्यक्ति के ईर्ष्यालु और आलसी होने का संकेत देती है.
लिखावट के नीचे के भाग में प्रमुखता (जैसे ‘इ’ की रेखा को नीचे तक खींच देते हैं) व्यक्ति के अन्दर तीव्र यौन तृष्णा और भौतिक वस्तुओं के लिए चाह और संघर्ष का प्रमाण है.
इसी तरह बुहत चौड़ा हाशिया घमण्डी स्वभाव का लक्षण हो सकता है, जबकि पतला हाशिया स्वार्थी स्वभाव का और लहरदार हाशिया असुरक्षा की भावना का लक्षण है. दो लाइनों के बीच ज्यादा दूरी का मतलब सच को समझने की अयोग्यता और कम दूरी गर्मजोशी ओर ईमानदारी जैसे गुणों का सूचक है.
लिखावट विशेषज्ञों के अनुसार यदि व्यक्ति के अन्दर आत्मविश्वास की कमी है तो वह उसकी छोटी, प्रवाहहीन, धीमी और सिकुड़ी हुई लिखावट से झलक जाती है जबकि एक आत्मविश्वास से भरपूर व्यक्ति की लिखावट बड़ी, प्रवाहपूर्ण, तेज और कागज पर अच्छी तरह से फैली हुई रहती है. एक ही अक्षर को यदि भिन्न-भिन्न तरीके से लिखा गया है तो यह व्यक्ति की घबराहट को दिखाता है.
निश्चयी और दृढ़ स्वभाव के व्यक्तियों की लिखावट में हर शब्द के पहले अक्षर की प्रमुखता और अक्षरों की सुस्पष्टता तीखे कोणों से झलकती है जबकि एक अनिश्चयी और असमंजसपूर्ण व्यक्ति की लिखावट दबी-दबी, कमजोर और अस्पष्ट सी होती है.
कुछ व्यक्ति छोटे-छोटे, मोती जैसे अक्षर लिखते हैं. ऐसे व्यक्ति कलाप्रिय और साहित्यिक रूचि के होते हैं. वे हर चीज के विस्तार पर ज्यादा ध्यान देते हैं. ऐसे अक्षरों वाले व्यक्ति साहित्यकार, स्कालर, दार्शनिक, राजनेता, और सफल पर्यवेक्षक होते है तथा जीवन में निरन्तर और ऐसे व्यक्ति अधिकतर अपना जीवन स्वयं बनाते हैं. जो व्यक्ति लिखावट में शिरोरेखा नहीं खींचते, वे हमेशा स्वतंत्रा रूप से काय्र करना चाहते हैं और अपने
जीवन में किसी का दबाव पसंद नहीं करते.
यह सच है कि किसी भी व्यक्ति के वास्तविक स्वभाव को पूरी तरह कभी भी समझा नहीं जा सकता क्योंकि वह हमेशा बदलता रहता है और ऐसा ही लिखावट के बारे में होता है. फिर भी व्यक्तित्व में कुछ ऐसे तत्व होते हैं जो हमेशा समान रहते हैं जैसे-हमारा बौद्धिक स्तर, हमारे माता-पिता का हम पर प्रभाव और हमारी बुनियादी मनोवैज्ञानिक बनावट आदि का ग्राफोलॉजी द्वारा सही-सही पता लगाया जा सकता है क्योंकि यह मनोवैज्ञानिक सत्य है कि हमारे सभी भावनात्मक और दैहिक कार्यकलापों का केन्द्र और संचालक एक ही है मस्तिष्क. चूंकि हमारी लिखावट, मस्तिष्क द्वारा संचालित एक क्रिया है, इसलिए हमारे व्यक्तित्व का प्रतिनिधित्व करती है.