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हिंदू धर्म में सबसे ज़्यादा माने जाने वाले भगवान श्रीराम जिन्हें मर्यादापुरूषोत्तम भी कहा जाता है. इनकी ज़िन्दगी में काफी कुछ ऐसा है जो हमें कुछ न कुछ सिखाता है. वैसे तो भगवान राम की जानकारी हर किसी के पास है. भगवान राम की ज़िन्दगी से जुड़े कई रोचक तथ्य है जिन्हें हमें जरूर जानना चाहिए.

भगवान राम कौन थे?

भगवान राम को अयोध्या के राजा दशरथ का बेटा कहा जाता है. इन सभी से पहले भगवान राम भगवान विष्णु के सातवे अवतार हैं. भगवान विष्णु ने कुल 10 अवतार लिए थे जिसमें से श्री राम का अवतार सबसे ज़्यादा पूज्यनीय है. भगवान राम के पिता राजा दशरथ तथा माता कौशल्या थीं. राजा दशरथ की दो अन्य पत्नियां भी थी जो सुमित्रा और कैकयी थीं. इनके पुत्र लक्ष्मण, भरत और शत्रुघ्न थे. श्रीराम सबसे बड़े भाई थे.

भगवान राम की बहन कौन थी?

भगवान राम की दो बहने थीं. एक का नाम शांता तथा एक का नाम कुकुबी था. इन दोनों का ही जिक्र बहुत ही कम मिलता है. दक्षिण भारत की रामायण में इनका जिक्र मिलता है. राजा दशरथ ने अपनी पुत्री शांता को अंगदेश के राजा रोमपद को दे दिया था. रोमपद की पत्नी वर्षिणी शांता की माता कौशल्या की बहन थी. राजा रोमपद और वर्षिणी ने ही शांता को पाल-पोसकर बड़ा किया और इसके बाद उनका विवाह महर्षि विभांडक के पुत्र ऋंग ऋषि से हुआ था.

भगवान राम का जन्म किस युग में हुआ था

भगवान राम का जन्म त्रेतायुग में हुआ था जब इस धरती पर लंकापति रावण का अत्याचार बढ़ने लगा था. शोधानुसार पता चलता है कि भगवान राम का जन्म 5114 ईस्वी पूर्व चैत्र मास की नवमी को हुआ था. जिसे आज हम रामनवमी के रूप में मनाते हैं.

भगवान राम का वनवास

भगवान राम के वनवास का कारण पिता दशरथ का दिया हुआ वचन था. पिता दशरथ ने अपनी पत्नी कैकयी को एक वचन देने के लिए कहा था. जब भगवान राम को अयोध्या का राजा बनाने की बात हुई तो कैकयी ने मंदोदरी के कहने पर राजा दशरथ से भगवान राम को 14 साल के लिए वनवास भेजने को कहा. भगवान राम अपनी पत्नी सीता और भाई लक्ष्मण के साथ 14 साल के वनवास पर निकल गए. जहां असुर रावण माता सीता का अपहरण करके लंका ले गया. इसके बाद भगवान राम ने हनुमान की मदद से वानर सेना बनाकर लंकापति रावण का वध किया और सीता माता को मुक्त कराया. इसके बाद वे अयोध्या वापस आ गए. उनके आगमन को हम दीवाली के रूप में मनाते हैं.

भगवान राम किस कुल के थे?

भगवान राम राजा दशरथ क बेटे थे लेकिन कई लोग सोचते हैं कि वो कौन से कुल के थे. तो कहा जाता है ‘‘रघुकुल रीत सदा चली आई, प्राण जाई पर वचन न जाई’’. भगवान राम रघु कुल के थे. बताया जाता है कि वैवस्वत मनु के दस बेटे थे. इनमें से एक इक्ष्वाकु के कुल में रघु हुए. रघु के कुल में राम हुए. भगवान राम के दो बेटे थे लव और कुश जिन्होंने आगे चलकर भगवान राम का वंश चलाया.

रामायाण किसने लिखी?

भगवान राम के जन्म से वनवास पूरा करने की कथा रामायण में है. रामायण के अलग-अलग जगह पर अलग-अलग रूप हैं. लेकिन प्रारंभिक रूप रामायण को ही माना जाता है जिसे महर्षि वाल्मिकी द्वारा लिखा गया था. इसे संस्कृत में लिखा गया था. इसके अलावा तमिल भाषा में ‘कंबन रामायण’, बंगाली भाषा में ‘रामायण पांचाली’, मराठी में ‘भावार्थ रामायण’, असम में ‘असमी रामायण’, उड़िया में ‘विलंका रामायण’ आदि प्राचीनकाल में लिखी गई रामायण हैं. इनके अलावा अवधि भाषा में तुलसीदासजी द्वारा रामचरित मानस लिखी गई. विदेशी भाषाओं में भी रामायण लिखी गई है जैसे कंपूचिया की रामकेर्ति या रिआमकेर रामायण, मलेशिया की हिकायत सेरीराम, थाइलैंड की रामकियेन और नेपाल की भानुभक्त-कृत आदि फेमस रामायण हैं.

भगवान राम की मृत्यु कैसे हुई?

भगवान राम की आयु की बात करें तो इसके कोई पुख्ता प्रमाण नहीं है लेकिन कहा जाता है कि भगवान राम ने इस पृथ्वी पर 10 हजार से भी ज़्यादा साल राज किया था. भगवान श्रीराम की मृत्यु कैसे हुई इस बात का जिक्र पद्मपुराण की एक कथा में मिलता है. कथा के अनुसार एक दिन एक वृद्ध संत भगवान राम के दरबार में आए और उनसे अकेले में बात करने की इच्छा जाहिर की. भगवान राम उन्हें एक कमरे में ले गए और कमरे के बाहर अपने छोटे भाई लक्ष्मण को खड़ा किया और कहा कि हमारे बीच कि हमें कोई परेशान न करें या अंदर न आए. अगर कोई अंदर आया तो तुम्हें मृत्युदंड दिया जाएगा.

वे दोनों कमरे में गए तभी ऋषि दुर्वासा वहां पहुंच गए और श्रीराम से बात करने का आग्रह करने लगे लेकिन लक्ष्मण ने उन्हें मना कर दिया. तब ऋषि दुर्वासा को गुस्सा आया और उन्होंने श्रीराम को श्राप देने की धमकी दी. तब लक्ष्मण को कुछ समझ न आया कि वो अपने भाई को श्राप से बचाए या फिर खुद मृत्युदंड का भागीदार बने. तब लक्ष्मण ने एक रास्ता निकाला.

लक्ष्मण उस कक्ष के अंदर चले गए जहां श्रीराम उस संत से बात कर रहे थे. भाई लक्ष्मण को देखकर श्रीराम अचंभित हुए और वचन के मुताबिक उन्हें दंड दिया गया. हालांकि दंड में उन्हें मृत्युदंड नहीं मिला बल्कि देश निकाला दिया गया. लेकिन लक्ष्मण के लिए ये देश निकाला किसी मृत्युदंड से कम नहीं था क्योंकि आजतक वे अपने भाई के बिना नहीं रहे थे. इसलिए उन्होंने देश निकाले से बेहतर अपने प्राण त्यागना उचित समझा. जब लक्ष्मण ने सरयू नदी में जाकर अपने प्राण त्याग दिए और वे शेषनाग के अवतार में आ गए.

अपने भाई के चले जाने के गम में राम भी काफी मायूस थे कुछ दिनों बाद उन्होंने राज-पाट अपने भाईयों को सौंपकर इस लोक से जाने का विचार किया. राज-पाट सौंपकर वे सरयू नदी की ओर चले गए तथा सरयू नदी में वे आंतरिक भू-भाग तक चले गए. इसके बाद कुछ देर बाद भीतर से भगवान विष्णु प्रकट हुए और भक्तों को उन्होंने दर्शन दिए और फिर बैकुंठ धाम की ओर प्रस्थान किया.

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