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Babur History : अपने ही सैनिकों से हारा था बाबर, जानिए कैसे बना भारत में मुगल वंश का संस्थापक?

भारत के इतिहास में मुगलकाल (Mughal empire) का अपना ही महत्व है. यही कारण है कि भारत में कई जगहों पर मुगलकाल से संबन्धित कला एवं स्थापत्य देखने को मिलता है. भारत में मुगलकाल की नींव रखने वाला मुगल शासक बाबर (Babur) था जो कभी अपने सैनिकों के हाथों अपना राज्य हार गया था. लेकिन बाद में उसने भारत पर आक्रमण किया और भारत में मुगल वंश की नींव रखी. इस लेख में आप बाबर के बारे में काफी कुछ जानेंगे. जिसमें बाबर का इतिहास (Babur history), बाबर के प्रमुख युद्ध (Babur important Battles), बाबर का भारत पर आक्रमण तथा बाबर के बारे में जरूरी बातें शामिल है.

बाबर का इतिहास (History of Babur)

बाबर का असली नाम (Babur Real Name) ‘जहीरुद्दीन मुहम्मद बाबर था. बाबर का जन्म (Babur birth date) 14 फरवरी 1483 को फरगना घाटी के अन्दीझान नामक शहर में हुआ था जो वर्तमान में उज्बेकिस्तान में स्थित है. बाबर के पिता (Babur father name) उमर शेख मिर्जा फरगना घाटी के शासक थे. बाबर की मातृभाषा चगताई थी. बाबर का असली नाम तो ‘जहिर उद दिन मुहम्मद’ था लेकिन चुगताई लोग असभ्य और असंस्कृत थे और उन्हें इस नाम का उच्चारण कठिन लगता था इसलिए वे उसे ‘बाबर’ कहकर बुलाते थे. कहा जाता है की बाबर बहुत ही ताकतवर आदमी था. बाबर दो लोगों को अपने कंधे पर रखकर दौड़ लेता था. वहीं वो अपनी राह में आने वाली हर नदी खुद तैरकर पार करता था. उसने गंगा को दो बार पार किया था.

खुद के सैनिकों से हारा बाबर (Babar first Battle)

बाबर को 12 साल की उम्र में ही फरगना घाटी का शासक बना दिया गया था. उसके चाचाओं ने इस बात का फायदा उठाया और बाबर को गद्दी से हटा दिया. कई सालों तक बाबर ने यहाँ-वहाँ घूमकर अपना जीवन गुजारा. इस दौरान उसके साथ कुछ किसान और संबंधी थे. साल 1496 में उसने समरकन्द पर आक्रमण किया और उसे जीत लिया. इस दौरान एक सैनिक सरगना ने फरगना पर अपना कब्जा जमा लिया. बाबर फरगना पर आक्रमण करने गया तो उसकी खुद की सेना ने समरकन्द में उसका साथ छोड़ दिया. इस तरह खुद के सैनिकों की वजह से बाबर के हाथों से समरकन्द और फरगना दोनों चले गए. लेकिन सान 1501 में बाबर ने समरकन्द पर पुनः अपना अधिकार कर लिया.

बाबर ने इसके बाद खुद की सेना बनाने पर ध्यान दिया. बाबर ने समरकन्द पर अधिकार करने के बाद काबुल तथा हेरात पर अपना अधिकार बनाया. साल 1510 में बाबर ने फारस के शाह इस्माइल प्रथम के साथ मध्य एशिया पर आधिपत्य जमाने का एक सम्झौता किया. शाह इस्माइल ने बाबर की मदद की और बदले में बाबर ने ‘साफवियों’ की श्रेष्ठता को स्वीकार किया. शाह इस्माइल ने बाबर को पूरी मदद की जिसके बदले में बाबर ने अपने आप को शिया परंपरा में ढाल लिया.

बाबर का भारत पर आक्रमण (Why Babur attack on India?)

बाबर का विश्वास था की चंगेज़ खान उसके पूर्वज थे. इस कारण बाबर खुद को तैमूरवंशी मानते थे. साल 1520 से 1526 के बीच में ही भारत में दिल्ली सल्तनत पर खिलजी वंश का शासन था लेकिन इनके पतन के बाद वहाँ पहले खिज्र खान ने शासन किया और फिर लोधी राजवंश ने सत्ता हथिया ली.

बाबर को लगता था कि दिल्ली सल्तनत पर तैमूरवंशियों का शासन होना चाहिए. एक तैमूरवंशी होने के कारण वो दिल्ली सल्तनत पर शासन करना चाहता था. इसके लिए उसने लोधी राजवंश के सुल्तान इब्राहिम लोदी को अपनी इच्छा से अवगत कराया लेकिन इब्राहिम लोदी ने इसे अस्वीकार कर दिया और फिर बाबर ने भारत पर छोटे-छोटे आक्रमण करना शुरू कर दिये. सबसे पहले उसने कंधार पर कब्जा किया. इसके बाद बाबर ने पानीपत में इस्माइल शाह के साथ मिलकर इब्राहिम लोदी के खिलाफ युद्ध लड़ा और इब्राहिम लोदी को हराकर दिल्ली की सत्ता पर अपना अधिकार कर लिया तथा भारत में मुगलवंश की नींव रखी.

बाबर के प्रमुख युद्ध (Babur Important Battle in India)

बाबर ने अपने जीवन में कई युद्ध लड़े हैं जिनमें से कुछ भारत के बाहर लड़े हैं तथा कुछ भारत मे लड़े हैं. यहाँ हम आपको बाबर द्वारा भारत में लड़े गए युद्द के बारे में बता रहे हैं.

पानीपत का पहला युद्ध (First battle of Panipat)

21 अप्रैल 1526 को बाबर तथा शाह इस्माइल ने मिलकर इब्राहिम लोदी के खिलाफ युद्ध लड़ा था जिसे पानीपत का पहला युद्ध कहते हैं. इस युद्ध में बाबर ने बारूदी हथियारों का उपयोग किया था. इसमें बाबर की सेना लोदी की सेना के सामने काफी चोटी थी लेकिन सेना में संगठन की कमी के कारण इब्राहिम लोदी ये युद्ध हार गए.

खानवा का युद्ध (Battle of Khanwa)

17 मार्च 1527 को मेवाड़ के शासक राणा सांगा और बाबर के मध्य युद्ध लड़ा गया जिसे खानवा का युद्ध कहते हैं. इस युद्ध में राणा सांगा की सेना काफी बड़ी थी. बाबर की सेना तो इनकी सेना की आधी भी नहीं थी. इस युद्ध में राणा सांगा की विजय निश्चित थी लेकिन युद्ध के दौरान राणा सांगा घायल हो गए और उनके साथियों ने उन्हें युद्ध से बाहर निकाल
दिया. इसके बाद नेतृत्व की कमी के कारण ये युद्ध राणा सांगा हार गए. इस युद्ध के बाद बाबर ने भारत में रहने का निश्चय किया और गाजी की उपाधि धारण की.

चँदेरी युद्ध (Battle of Chanderi)

21 जनवरी 1528 को बाबर ने चँदेरी में युद्ध लड़ा. मेवाड़ में राजपूतों को हराने के बाद बाबर जान गया था कि भारत में यदि उसे रहना है तो राजपूतों को संगठित होने से रोकना होगा. वहीं उसे खबर लगी कि चँदेरी में राजपूत शक्ति संगठित हो रही है. इस कारण उसने चँदेरी पर आक्रमण किया. इसमें राजपूतों और बाबर की सेना के बीच भयंकर युद्ध हुआ तथा राजपूती वीरांगनाओं ने जौहर किया. लेकिन अंततः राजपूतों की हार हुई. बाबर ने चँदेरी को अहमद शाह को दे दिया.

घाघरा का युद्ध (Battle of Ghaghra)

भारत में जहां एक ओर बाबर को राजपूती शक्ति से डर था वहीं दूसरी ओर अफगानी लोगों से भी डर था. अफगानी धीरे-धीरे करके भारत पर अपना नियंत्रण कर रहे थे. इब्राहिम लोदी का भाई महमूद लोदी भारत में अफगानी शक्ति को संगठित कर रहा था. उसने करीब 1 लाख सैनिक इकट्ठे किए थे. महमूद लोदी अपना नियंत्रण बिहार तक कर चुका था. ऐसे में अफगानी शक्ति को दबाने के लिए बाबर ने 6 मई 1529 को महमूद लोदी के साथ युद्ध किया. इसमें बंगाल एवं बिहार की संयुक्त सेना ने भाग लिया था और ये इतिहास का ऐसा पहला युद्ध था जिसे जल एवं थल दोनों जगह पर लड़ा गया था. इस युद्ध में बाबर की जीत हुई थी.

घाघरा का युद्ध बाबर के जीवन का अंतिम युद्ध था. इसके बाद बाबर आगरा चला गया था. इसके बाद साल 1530 में बाबर का स्वास्थ्य बिगड़ने लगा और 48 साल की उम्र में उसकी मृत्यु हो गई. बाबर की इच्छा थी कि उसे काबुल में दफनाया जाए लेकिन पहले उसे आगरा में दफनाया गया इसके 9 साल के बाद बाबर के बेटे हुमायूँ ने बाबर की इच्छा को पूरा किया और काबुल में दफ्न दिया.

बाबर के द्वारा किए गए प्रमुख कार्य (Babur artwork in India)

बाबर ने भारत में शासन के दौरान पानीपत के निकट काबुली बाग में एक मस्जिद बनवाई, इसके अलावा रूहेलखण्ड में संभाल की जामी मस्जिद तथा आगरा में लोदी किले के भीतर एक मस्जिद बनवाई थी. आगरा में ही बाबर ने नूर अफगान नाम का उद्यान बनवाया था. बाबर ने अपनी जीवनी (Babur Biography name) खुद लिखी है जिसका नाम बाबरनामा है. बाबर ने इसे चगताई तुर्की में लिखा था.

By रवि नामदेव

युवा पत्रकार और लेखक

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