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पाकिस्तान में 25 जुलाई को आम चुनाव होने जा रहे हैं. देश के लिए यह ऐतिहासिक आयोजन है क्योंकि यह केवल दूसरी बार है जब लोकतांत्रिक तरीके से सत्ता का हस्तांतरण होगा, लेकिन पाकिस्तानी लोकतंत्र के इस महापर्व का बहुत सारा खेल अभी बाकी है. ऐसे समय में जब सियासत में सेना के दखल के गंभीर आरोप लग रहे हैं तो यह चुनाव और भी अहम हो जाता है. यही वजह है कि लोकतंत्र का टेस्ट माने जा रहे पाक के इस चुनाव पर पूरी दुनिया की नजरें टिकी हुई हैं.

पीएमएल-एन के 5 साल और लोकतंत्र

पिछले शुक्रवार को सत्तारूढ़ पाकिस्तान मुस्लिम लीग-नवाज (पीएमएल-एन) ने पांच साल का कार्यकाल पूरा करने के बाद कार्यवाहक सरकार को सत्ता सौंप दी. यह भी लोकतंत्र के लिए मील का पत्थर है. हालांकि जैसे-जैसे चुनाव प्रचार शुरू हुआ है, नेताओं और शक्तिशाली सेना के बीच तनाव भी बढ़ता जा रहा है. आपको बता दें कि बंटवारे के बाद से पाकिस्तान पर आधे से ज्यादा समय तक सेना का ही शासन रहा है. इसके कारण पाकिस्तान को परेशान भी होना पड़ा है.

सेना का दखल और चुनाव

दुनिया में आज भी पाकिस्तान लोतांत्रिक देश के रूप में अपनी छवि नहीं बना पाया है. हालांकि पाकिस्तान उस दिशा में बढ़ने का प्रयास तो किया है, लेकिन सेना की ताकत के सामने वहां का लोकतंत्र बार-बार हारता रहा है. पाकिस्तान में सेना के साथ वहां के कट्टरवादी इस्लाम समर्थकों का जबरदस्त संबंध है. या ऐसा कहें कि कट्टरवादियों की सेना में जबरदस्त तरीके से घुसपैठ है, या फिर सेना का कट्टरपंथियों के बीच गहरी पकड़ है. यह भी वहां के लोकतंत्र को स्थापित नहीं होने दे पा रहा है.

Image source: dawn.com.
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धमकियों के बीच जम्हूरियत

मीडिया में आई रिपोर्ट्स के मुताबिक पीएमएल-एन के 4 सांसदों ने बताया कि उन पर दबाव है और धमकियां मिल रही हैं कि वह अपनी विरोधी पार्टियों के खेमे में चले जाएं, जबकि अखबार सेना के दखल के आरोपों से भरे पड़े हैं. इधर, पत्रकारों और मीडिया समूहों का कहना है कि सेंसरशिप बढ़ गई है. पीएमएल-एन के मंत्री रहे दानियाल अजीज ने कोडवर्ड में समझाया था कि कैसे जनरल चुनाव में दखलंंदाजी हो रही है. उन्होंने कहा, यह सब पीछे के रास्ते, छिपकर और रेडार से नीचे हो रहा है.

सेना का इंकार लेकिन मुश्किल में पाकिस्तान

हालांकि पाक आर्मी ने साफ तौर पर राजनीति में हस्तक्षेप से इनकार किया है. ऐसे आरोपों पर पूछे गए सवालों का सेना ने जवाब नहीं दिया. 20.8 करोड़ की आबादी वाले परमाणु संपन्न पाकिस्तान में यह राजनीतिक तनाव ऐसे समय में बढ़ रहा है जब देश आर्थिक अस्थिरता की तरफ बढ़ता दिख रहा है. इस्लामाबाद का विदेशी मुद्रा भंडार तेजी से गिर रहा है और उसका चालू वित्तीय घाटा बढ़़ने से विश्लेषकों को लगने लगा है कि अगली सरकार को दूसरी बार बेलआउट की जरूरत होगी.

संकट के बीच नवाज शरीफ

खैर उधर, पीएमएल-एन के संस्थापक नवाज शरीफ भ्रष्टाचार के आरोपों का सामना कर रहे हैं. सुप्रीम कोर्ट ने उन्हें पीएम पद के अयोग्य ठहरा दिया था, जिसके बाद उन्हें पद छोड़़ना पड़ा. उन्होंने इस पर कहा है कि यह चुनाव पूर्व धांधली है जिससे हमारी पार्टी को फिर से सत्ता में आने से रोका जा सके. उन्होंने वोट की पवित्रता को बचाए रखने की बात कहते हुए संघर्ष की बात कही है.

सेना आज भी बड़ी ताकत

फिलहाल पाकिस्तान अपने लोकतंत्र के महापर्व की ओर बढ़ रहा है, लेकिन सेना की धमक और उसके बूट का दबाव लोकतंत्र पर साफ-साफ दिखने लगा है. दरअसल, पाकिस्तान में सेना की ताकत को कोई चुनौती नहीं दे सकता है. सेना ही पाकिस्तान के लिए सबकुछ है. राजनीति, न्यायालय और कार्यपालिका के लिए थोड़ी-थोड़ी जगह छोड़ दी गई है. सेना जो तय करती है वही पाकिस्तान का नियम और कानून होता है. सेना सारे तंत्रों को संचालित करती है. यहां तक कि स्थानीय प्रशासन और विकास के कामों में भी सेना का जबरदस्त हस्तक्षेप होता है.

भारत करेगा पाक से बातचीत?

पाकिस्तान जिस दौर से गुजर रहा है उसमें भारत जैसे लोकतांत्रक देशों को पाकिस्तान की सहायता करनी चाहिए. यदि पाकिस्तान में लोकतंत्र मजबूत होता है तो वहां आतंकवाद पर भी लगाम लगेगा और आतंकवाद पर लगाम लगेगा तो भारत के लिए यह सकारात्मक होगा. जिस प्रकार का लोकतंत्र भारत में मजबूत हो रहा है ऐशिया में वही लोकतंत्र आने वाले समय में लगभग प्रत्येक देशों में स्थापित होगा. भारत उसका प्रणेता बन सकता है.

इधर, बांग्लादेश, नेपाल, भुट्टान, श्रीलंका, पास्तिान, अफगानिस्तान, ईरान, इराक आदि देशों में भारत जैसा ही लोकतंत्र लगभग स्थापित हो चुका है इसे मजबूत करने की जरूरत है. बहुत संघर्ष के बाद म्यांमार में भी लोकतंत्र की स्थापना हुई है, लेकिन वहां भी चीनी दबाव के कारण लोकतंत्र पर खतरा मंडरा रहा है. इस मामले में भारत ऐशिया के देशों का नेतृत्व कर सकता है. फिलहाल पाकिस्तान के इस लोकतांत्रिक महापर्व को लक्ष्य तक पहुंचाने की जिम्मेवारी भारत को उठाना चाहिए.

(इस लेख के विचार पूर्णत: निजी हैं. यहां प्रकाशित होने वाले लेख और प्रकाशित व प्रसारित अन्य सामग्री से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है. आप भी अपने विचार या प्रतिक्रिया हमें editorindiareviews@gmail.com पर भेज सकते हैं.)

By गौतम चौधरी

वरिष्ठ पत्रकार

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