अपने मनुष्य पर ग्रहों-नक्षत्रों के प्रभाव के विषय में तो सुना ही होगा. यही नहीं, मनुष्य पर वातावरण में उपस्थित प्रत्येक वस्तु का समुचित प्रभाव पड़ता है. यहां तक कि प्रत्येक व्यक्ति की पसन्द या नापसन्द के अनुरूप रंगों का भी प्रभाव उसकी प्रवृत्ति पर पड़ता है. किस प्रकार के रंग का किस व्यक्ति पर कैसा प्रभाव पड़ेगा, इस विधि को सीका का नाम दिया गया है. सीका अर्थात् ’सेल्फ-इमेज कलर इग्नालिसिस‘!
इस विषय में सम्बन्धित डोरोथी एल. मेला ने एक पुस्तक भी लिखी है जिसका नाम है ’द लैंग्वेज ऑफ कलर‘. इस पुस्तक में रंगों के विषय में विस्तारपूर्वक बताया गया है कि किस प्रकार के रंग का मनुष्य के व्यक्तित्व पर क्या प्रभाव पड़ता है तथा किस प्रकार के रंगों को पसन्द करने वाले व्यक्ति की प्रवृत्ति किस प्रकार की हो सकती है. यह अभी भी बहुत से व्याक्तियों को ज्ञात नहीं है कि रंगों का शारीरिक एवं मानसिक स्वास्थ्य पर असाधारण प्रभाव पड़ता है.
इस सम्बन्ध में डोरोथी एल. मेला कहते हैं कि महत्त्वाकांक्षी और बहिर्मुखी स्वभाव वाले व्यक्तित्व की पसन्द का रंग लाल होगा. ऐसे व्यक्ति सदैव गतिशील तथा सक्रिय रहने वाले और अपेक्षाकृत अधिक कामुक प्रवृत्ति के होते हैं.
जिन्हें गुलाबी रंग पसन्द होता है वह बहुत दयालु स्वभाव के तथा प्यार करने वाले व्यक्ति होते हैं. यह रंग व्यक्ति विशेष की काम के प्रति गहरी आसक्ति तथा गतिशीलता का द्योतक है. ऐसे व्यक्ति धैर्यवान, स्थिर स्वभाव के और आकस्मिक घटनाओं से न घबराने वाले होते हैं.
नीला रंग पसन्द करने वाले व्यक्ति आनंदप्रिय तथा तुरन्त निर्णय लेने वाले होते हैं. ऐसे व्यक्ति धीर-गंभीर स्वभाव के होते हैं तथा प्रायः न्यायाधीश, प्रबन्धक अथवा वैज्ञानिक होते हैं. इसी प्रकार हल्का नीला रंग पसन्द करने वाले व्यक्ति गंभीर होने के साथ ही सृजनात्मक प्रवृत्ति के, कलात्मक अभिरूचि वाले व कल्पनाओं के सहारे जीने वाले होते हैं.
जो व्यक्ति काला रंग पसन्द करते हैं, वे दृढ़ इच्छा भक्ति वाले होते हैं तथा कैसी भी परिस्थितियों से नहीं घबराते. जामुनी रंग की पसन्द वाले मानसिक अपरिपक्वता, अनाड़ीपन तथा बचकानेपन की प्रवृत्ति के तथा आध्यात्मिक व धार्मिक स्वभाव के होते हैं. ऐसे व्यक्तियों की सोच निषेधात्मक होती है. कत्थई या सफेद रंग की पसन्द इंद्रियलिप्सा, भोगों में रूचि व असंयम का प्रतीक है. ऐसे व्यक्ति प्रायः एकान्तप्रिय होते हैं तथा बाद में कई विकारों से पीडि़त हो जाते हैं.
भूरे रंग को पसन्द करने वाले शांतिपूर्ण, तथा सात्विक, सौम्य, सतोगुणी व्यक्तित्व का प्रतिनिधित्व करते हैं. ऐसे व्यक्ति अपने हाथों पर भरोसा करते हैं तथा ऐसा ही पेशा अपनाते हैं जो प्रकृति के निकट हो. इसी प्रकार पीले रंग की अभिरूचि वाले व्यक्ति प्रफुल्लता भरी, और हल्की फुल्की जिन्दगी जीना पसंद करते हैं तथा अल्हड़ स्वभाव के काम में रूचि लेने वाले मस्त तबीयत के आदमी होते हैं.
इस सम्बन्ध में प्रसिद्ध वैज्ञानिक डॉ. अलबर्ट कॉहन जो स्टैनफोर्ड रिसर्च सेंटर में कार्यरत हैं, उनका कहना है कि कई मनोविकारग्रस्त, तनाव पीडि़त तथा असन्तुलित व्यक्तियों का उपचार मात्रा उनके आसपास के रंगों को बदल देने से भी हो सकता है. वैज्ञानिकों का मत है कि विभिन्न रंगों का व्यक्ति विशेष की मन-स्थिति पर भिन्न-भिन्न प्रभाव होता है. उदाहरण के लिए कई व्यक्तियों को लाल रंग के कपड़े पहनने से चक्कर से आने लगता है.
सफेद कपड़े पहनने से इन्सान अपने आपको बहुत शालीन व सुसभ्य समझने लगता है. इससे उसे मानसिक रूप से आराम मिलता है. काले रंग के कपड़ों से एक प्रकार का अवसाद घेर लेता है.
इसी आधार पर आधुनिक व चमकीले, तड़क-भड़क वाले रंगों को निषेध समझा जाता है. वैज्ञानिक ऐसे रंगों को विजुअल-पोल्युशन के अर्न्तगत हानिकारक समझते हैं. इनके कारण मानव के निषेधात्मक चिन्तन को बढ़ावा मिलता है तथा उसमें तनाव, बेचैनी, मानसिक अवसाद व मनोविकारों की उत्पति होती है.
हमारे भारत में तो प्राचीन काल से ही भारतीय दर्शन में भिन्न-भिन्न रंगों का प्रभाव देखने को मिलता है. इस आधार पर रंग विशेष के प्रभाव को समझकर अपने अथवा व्यक्ति-विशेष के स्वभाव को समझकर उसे अपनी इच्छानुरूप प्रभावित किया जा सकता है. अपने अथवा किसी अन्य के अस्थायी उद्वेगों को प्रभावित कर कई, भौतिक अथवा मानसिक विकारों से बचा जा सकता है. इस तरह हमें अपनी पसंद या नापसन्द की चीजों में रंगों के प्रभाव को भी ध्यान में रखना चाहिए तथा अपनी इच्छा व अभिरूचि के अनुसार ही रंग चयन करना चाहिए.