Fri. Apr 26th, 2024
Image source: pixabay.com

कृषि का आधुनिकीकरण करने के लिए नए से नए यंत्रों से लेकर खरपतवार और कीटनाशकों का प्रयोग किया जा रहा है. अत्याधिक तौर पर खरपतवार और कीटनाशकों के प्रयोग से पर्यावरण और जीव-जंतुओं को भी नुकसान हो रहा है. इस बारे में पहले भी कई रिसर्च की जा चुकी हैं. हाल ही में हुई एक रिसर्च में खरपतवारनाशी से मधुमक्खियों को अत्याधिक नुकसान होने की बात सामने आई है.

मधुमक्खियों को ग्लायफोसेट से खतरा 

दुनिया भर में खरपतवारनाशी के रूप में सबसे अधिक प्रयोग ग्लायफोसेट का किया जाता है. यह एक ऐसा हर्बीसाइड है, जिसे जीव-जंतुओं के लिए हानिकारक नहीं बताया गया था. हाल ही में हुई एक रिसर्च में इसे मधुमक्खियों के लिए खतरनाक पाया गया है. 

घट सकती है मधुमक्खियों की संख्या (Number of bees can decrease)

ग्लायफोसेट एक ऐसा रसायन है जो मधुमक्खियों के पाचन तंत्र में सूक्ष्मजीव संसार को बर्बाद कर देता है. जिसके चलते वे संक्रमण के प्रति अधिक संवेदनशील हो जाती हैं. इस रिसर्च के बाद से दुनिया में मधुमक्खियों की संख्या में गिरावट की आशंका और भी प्रबल हो गई है. 

ग्लायफोसेट कई महत्वपूर्ण एमिनो अम्लों को बनाने वाले एंज़ाइम की क्रिया को खत्म कर खरपतवार को नष्ट कर देता है. जंतु इस एंज़ाइम का उत्पादन नहीं करते लेकिन कुछ बैक्टीरिया इसका उत्पादन करते हैं. 

क्या की गई रिसर्च 

टेक्सास यूनिवर्सिटी की बायोलॉजिस्ट नैंसी मोरन ने अपनी टीम के साथ लगभग 2000 मधुमक्खियां लीं. कुछ मधुमक्खियों को चीनी का शरबत दिया गया और कुछ को चीनी शरबत में ग्लायफोसेट मिलाकर दिया गया. ग्लायफोसेट की मात्रा उतनी रखी गई थी, जितनी उन्हें पर्यावरण से मिल रही होगी.

Results of Research

तीन दिन तक इन मधुमक्खियों पर यह प्रयोग किया गया. जिसके बाद पाया गया कि ग्लायफोसेट का सेवन करने वाली मधुमक्खियों की आंतों में स्नोडग्रेसेला एल्वी नामक बैक्टीरिया की संख्या कम थी, लेकिन कुछ परिणाम भ्रामक भी थे. ग्लायफोसेट का कम सेवन करने वाली मधुमक्खियों की तुलना में अधिक सेवन करने वाली मधुमक्खियों में 3 दिन बाद अधिक सामान्य दिखने वाले सूक्ष्मजीव पाए गए.

रिसर्च टीम को लगा कि शायद ग्लायफोसेट वाले शक़्कर पानी का बहुत अधिक सेवन करने वाली अधिकांश मधुमक्खियों की मृत्यु हो गई होगी. केवल वही मधुमक्खियां बची होंगी, जिनके पास इस समस्या से निपटने के तरीके मौजूद थे.

संक्रमण बचाव प्रक्रिया हुई कमजोर

मधुमक्खी में सूक्ष्मजीव संसार में परिवर्तन घातक संक्रमण से बचाव की उनकी प्रक्रिया को कमजोर बनाता है. परीक्षणों में ग्लायफोसेट का सेवन करने वाली केवल 12 प्रतिशत मधुमक्खियां ही सेराटिया मार्सेसेंस के संक्रमण से बच सकीं. सेराटिया मार्सेसेंस मधुमक्खियों के छत्तों में पाए जाने वाले आम जीवाणु हैं.

वहीं रिसर्च में ग्यालफोसेट से मुक्त 47 प्रतिशत मधुमक्खियां ऐसे संक्रमण से सुरक्षित रहीं. “प्रोसीडिंग्स ऑफ दी नेशनल एकेडमी ऑफ साइंसेज़ जर्नल” में प्रकाशित इस रिसर्च ने मधुमक्खियों की तादाद में कमी के लिए एक संभावित कारण और जोड़ दिया है.

ग्लायफोसेट मानव के लिए भी है खतरा 

ग्लायफोसेट के प्रभावों पर की गई यह रिसर्च मानव जाति सहित अन्य जंतुओं के लिए भी घातक सिद्ध होती है. क्योंकि मानव आंत और मधुमक्खी की आंत में सूक्ष्म जीवाणुओं की भूमिका में कई समानताएं हैं. इस खोज ने विवादास्पद खरपतवारनाशी को दोबारा से रिसर्च विषय बना दिया है. (स्रोत फीचर्स)

Related Post

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *