इंदिरा गांधी एक ऐसा नाम जो देश ही नहीं बल्कि दुनिया के राजनीतिक पटल पर छाई रहीं और अपनी अमिट पहचान छोड़ गईंं. इंदिरा गांधी का जन्म नेहरू परिवार में हुआ, जो की बौद्धिक और आर्थिक दोनों ही प्रकार से संपन्न परिवार था. इसके बावजूद इंदिरा गांधी ने अपने बूते अपनी पहचान बनाई.
हर प्रकार की संपन्नता, बड़ा परिवार और भारतीय राजनीति का सबसे मुखर चेहरा होने के बाद भी “आयरन लेडी” इंदिरा गांधी निजी जीवन में अकेली ही रह गईं. राजनीतिक जीवन में कई उतार-चढ़ाव देखने के साथ ही उन्होंने अपने निजी जीवन में पिता, पति और अपने एक पुत्र को खो दिया था.
पिता से विरासत में मिली राजनीति
पिता जवाहरलाल नेहरू के सानिध्य में इंदिरा गांधी ने राजनीति का पाठ पढ़ना शुरू किया. वर्ष 1950 के दशक में इंदिरा ने भारत के पहले प्रधानमंत्री यानी अपने पिता पंडित जवाहरलाल नेहरू के निजी सहायक के रूप में अनौपचारिक रूप से कार्य किया.
इसी दशक के अंत में उन्होंने भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अध्यक्ष की जिम्मेदारी संभाल ली. जहां एक ओर साल 1964 में उन्हें राज्यसभा सदस्य मनोनीत किया गया, वहीं दूसरी ओर उन्हें पितृशोक होने से निजी जीवन की काफी बड़ी क्षति भी हुई.
पति फ़िरोज़ से भी रहा रिश्ते में तनाव
साल 1942 के मार्च महीने की 16 तारीख को इंदिरा का विवाह फ़िरोज़ गांधी से हुआ था, लेकिन दोनों के बीच निजी और राजनीतिक मतभेदों के कारण नहीं जमी. इंदिरा के किसी भी गलत फैसले का फ़िरोज़ खुलकर विरोध कर देते थे.
इंदिरा अपने दोनों बच्चों को लेकर लखनऊ स्थित अपना घर छोड़कर पिता के घर आनंद भवन आ गईं. इसी बात को लेकर दोनों के बीच तनाव बढ़ गया. फ़िरोज़ से जवाहरलाल नेहरू भी खुश नहीं रहते थे. वहीं इंदिरा गांधी ने भी कभी संसद में फिरोज़ के महत्वपूर्ण काम की तारीफ़ नहीं की.
बात राजनीति की हो या फिर परिवार की फिरोज़ और इंदिरा लगभग सभी पर बहस करते थे. फिरोज़ और इंदिरा अपने दोनों बेटों के साथ एक महीने की छुट्टियां बिताने कश्मीर चले गए. राजीव गांधी के अनुसार उनके माता-पिता के बीच जो भी मतभेद थे, वो इस दौरान भुला दिए गए. इसके बाद ही दिल का दौरा पड़ने से फिरोज़ गांधी की मौत हो गई.
मां-बेटे में भी नहीं बनीं
फ़िरोज़ और इंदिरा के दो बेटे थे संजय और राजीव गांधी. इंदिरा गांधी का अपने छोटे बेटे संजय से भी हमेशा तनाव ही रहता था. मात्र 33 वर्ष की आयु में संजय गांधी की मौत हो गई थी. हालांकि वे नेहरू-गांधी परिवार के सबसे विवादित नाम थे.
जहां संजय गांधी, इंदिरा गांधी के लिए राजनीतिक रूप से मजबूत स्तंभ थे, वहीं वे इंदिरा गांधी की कहीं न कहीं और किसी न किसी रूप में मज़बूरी भी बन गए थे. इंदिरा गांधी के निर्णायक फैसलों में संजय के काफी दखल थे और कहा जाता है कि देश पर इमरजेंसी थोपने में भी संजय की बड़ी भूमिका थी.
तेज तर्रार स्वाभाव और शैली के साथ ही संजय गांधी दृढ निश्चयी सोच के लिए जाने जाते थे. संजय के फैसलों के आगे कई बार तात्कालिक प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को भी पीछे हटना पड़ा. 14 दिसंबर 1946 को जन्मे संजय गांधी की 23 जून 1980 को एक हवाई दुर्घटना में मौत हो गई थी.