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Manipur में क्यों हो रही हिंसा, जानिए क्या है 54 लोगों की मौत की वजह

manipur violence 2023

मणिपुर के चुरचाँदपुर में 5 मई से हिंसा का सिलसिला चल रहा है. आलम ये है कि बीते 2 दिनों में करीब 54 लोग अपनी जान गंवा चुके हैं और 100 से ज्यादा लोग घायल हैं. यहाँ की जातिगत हिंसा ने एक बड़ा रूप ले लिया है. लेकिन इसका कारण कोई आज की समस्या नहीं बल्कि आजादी के बाद से चली आ रही समस्या है.

मणिपुर हिंसा का कारण (Manipur Violence Reasons)

मणिपुर में जो हिंसा हुई है वो इम्फाल से 63 किमी दूर चुराचंदपुर से शुरू हुई थी. ये हिंसा कुकी आदिवासी और मैतेई समुदाय के बीच हो रही है जिसमें आम जनता प्रभावित हो रही है. इस पूरे मामले का संबंध सिर्फ जातिगत हिंसा से नहीं है बल्कि ये जमीन और आम नागरिक के अधिकार से भी जुड़ा हुआ है. यहाँ हिंसा बढ़ती देख केंद्र सरकार ने इसका जिम्मा लिया है.

इम्फाल मणिपुर में बीचोंबीच में है. पूरे मणिपुर का 90 प्रतिशत हिस्सा पहाड़ों से घिरा है और 10 प्रतिशत हिस्सा घाटी है, जिसमें इम्फाल है. इम्फाल में पूरे प्रदेश की 57 प्रतिशत आबादी रहती है, बाकी की 42 प्रतिशत आबादी पहाड़ी क्षेत्रों में रहती है.

इम्फाल घाटी में मैतेई समुदाय का दबदबा है. ये ज्यादातर हिन्दू हैं और प्रदेश की कुल आबादी में करीब 53 प्रतिशत हैं. राजनीति में भी मैतेई समुदाय का दबदबा है क्योंकि प्रदेश के 60 विधायकों में से 40 विधायक मैतेई समुदाय के हैं.

मणिपुर का जो 90 प्रतिशत भूभाग है, जो पहाड़ों से घिरा है उस पर 33 मान्यता प्राप्त जनजाति रहती है जिसमें मुख्य रूप से नागा और कुकी जनजाति है. ये दोनों मुख्य रूप से ईसाई हैं. राजनीति में ये अल्पसंख्यक हैं क्योंकि इनके कुल 20 विधायक हैं.

मैतेई समुदाय की समस्या (Problem of Meitei)

मैतेई समुदाय वैसे तो सम्पन्न हैं क्योंकि इनका राजनीति में दबदबा है, पूरे प्रदेश में इनकी जनसंख्या ज्यादा है और ये पढे-लिखे सम्पन्न माने जाते हैं. लेकिन समस्या ये है कि ये सरकार से आदिवासी होने का दर्जा मांग रहे हैं, जिस पर पहाड़ों में रहने वाली जनजाति और आदिवासी समूह भड़के हुए हैं.

असल में जब मणिपुर का विलय साल 1949 में भारत में हुआ था तब मैतेई समुदाय को पहले से ही जनजाति का दर्जा मिला हुआ था. लेकिन आज के परिदृशय में समस्या ये है कि मैतेई समुदाय को पहाड़ों से पूरी तरह अलग कर दिया गया है.

मैतेई समुदाय पहाड़ों में जमीन खरीदकर उस पर खेती नहीं कर सकते और न ही वहाँ पर बस सकते हैं, दूसरी ओर पहाड़ों में रहने वाली जनजाति इम्फाल आकर घाटी क्षेत्र में बस सकती है और यहाँ पर कमाई भी कर सकती है. इसी बात को लेकर आदिवासियों ने 28 अप्रैल को इस विद्रोह की शुरुआत की.

आदिवासी समुदाय की समस्या (Problem of Kuki)

आदिवासी समुदाय मणिपुर में कम संख्या में है और पहाड़ों में बसता है लेकिन इनके पास ये अधिकार ये कि ये पूरे प्रदेश के 100 प्रतिशत भूभाग पर कहीं भी रह सकते हैं, जबकि मैतेई समुदाय के पास ये अधिकार नहीं है.

आदिवासी समुदाय का तर्क है कि मैतेई बहुसंख्यक हैं और इनका सियासी दबदबा है, ये पढे-लिखे सम्पन्न हैं. अगर इन्हें जनजाति का दर्जा मिल जाता है तो ये नौकरियों में हावी हो जाएंगे, पहाड़ों में जमीन खरीदना शुरू कर देंगे. जिससे आदिवासियों के जीवन में दखल होगा.

दूसरी ओर सरकार का कहना है कि आदिवासी समुदाय के लोग रिजर्व फॉरेस्ट में गैरकानूनी कब्जा करके अफीम की खेती कर रहे हैं. ये कब्जे हटाने के लिए सरकार मणिपुर फॉरेस्ट रूल 2021 के तहत फॉरेस्ट लैंड पर किसी तरह के अतिक्रमण को हटाने के लिए ड्राइव चला रही है.

दूसरी ओर आदिवासियों का कहना है कि ये जमीन उनके पूर्वज की है, उन्होंने अतिक्रमण नहीं किया है. वे वहाँ सालों से रहते आ रहे हैं. सरकार ने इन्हें हटाने का प्रयास किया जिसके फलस्वरूप आक्रोश फैला.

मणिपुर में हुई हिंसा एक तरफ तो जातिगत हिंसा है वहीं दूसरी ओर ये आदिवासियों के अधिकार की लड़ाई भी है.

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