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madhya pradesh assembly election 2018 मप्र चुनाव 2018 शिवराज सिंह चौहान, अमित शाहmadhya pradesh assembly election 2018 मप्र चुनाव 2018 शिवराज सिंह चौहान, अमित शाह

मध्य प्रदेश में इस साल के अंत तक चुनाव होने वाले हैं, और सीएम चेहरे को लेकर भाजपा ने रणनीति बदली है. बीते 4 मई को कार्यकर्ता सम्मेलन में कुछ घंटों के लिए शामिल हुए अमित शाह ने साफतौर पर कहा है कि एमपी चुनाव के लिए पार्टी की ओर से कोई चेहरा नहीं होगा और इसे संगठन के दम पर लड़ा जाएगा. अमित शाह की बात को प्रदेश अध्यक्ष राकेश सिंह ने भी दोहराया- ‘मप्र में भाजपा का कोई चुनावी चेहरा नहीं होगा, संगठन चुनाव लड़ेगा.’ भाजपा तय कर चुकी है कि शिवराजसिंह को सीएम चेहरे के तौर पर पेश नहीं किया जाएगा.

क्या होगा सीएम चौहान का?

दरअसल पिछले कुछ समय से मध्य प्रदेश में गाहे-बगाहे मुख्यमंत्री बदलने की खबरें आती रहती हैं. पिछले दिनों एक कार्यक्रम के दौरान खुद शिवराजसिंह ने “मेरी कुर्सी खाली है, जो चाहे वह बैठ सकता है” कहकर सनसनी मचा दी थी, जिसके कई मायने निकाले गये. दिल्ली से आते ही शिवराज का “कुर्सी खाली है” वाला बयान देना और भोपाल आकर अमित शाह का यह कहना कि इस बार विधानसभा चुनाव संगठन के दम पर लड़ा जाएगा बहुत कुछ संकेत देते हैं.

इस बीच ऐसी अफवाहें भी चल रही हैं कि चुनाव से पहले भाजपा नेतृत्व द्वारा मध्य प्रदेश में भी उपमुख्यमंत्री का फार्मूला अपनाया जा सकता है जिससे अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति को प्रतिनिधित्व देते हुये सत्ता संतुलन साधा जा सके. सूत्रों की मानें तो मध्य प्रदेश में आंतरिक सर्वे इस बात की तरफ इशारा कर रहे है कि शिवराज और उनकी सरकार के खिलाफ असंतोष है और नई टीम बनकर कांग्रेस जिस तरह से कमर कस रही है उससे भी कड़ी टक्कर मिलना तय है.

shivraj-singh-chouhan-losing-ground-in-madhya-pradesh. (Image Source: Social Media)
(Image Source: Social Media)

ताकतवर हैं शिवराज सिंह, कौन होगा विकल्प

एक दूसरा कारण यह है कि अमित शाह-मोदी की भाजपा में शिवराजसिंह चौहान उन चुनिन्दा बचे नेताओं में से एक हैं जिनकी अपनी खुद की जमीन है और जो पूरी तरह से अपने पैरों पर खड़े हैं. एक तरह से मध्य प्रदेश शिवराज का मॉडल है, अब अगर यहां भाजपा उनके नाम से चुनाव लड़कर तीसरी बार भी सरकार बनाने में कामयाब हो जाती है तो फिर उनकी स्थिति पार्टी में अंगद के पैर की तरह हो जाएगी और वे चुनौती देने की स्थिति में आ सकते हैं.

राजनीति अनिश्चताओं का खेल है अगर भविष्य में मोदी/अमितशाह के लिये पार्टी के भीतर कोई विपरीत स्थिति बनती है तो फिर शिवराजसिंह बड़े आसानी से एक विकल्प के तौर पर उभर कर सामने आ सकते हैं. आज भी मध्यप्रदेश में शिवराज सिंह भाजपा के लिए पर्याय बने हुये हैं और यहां हर चीज पर उनकी छाप है. हर हार या जीत उन्हीं के खाते में दर्ज होती है इसलिए अगर इस बार शिवराज सिंह चौहान को चेहरे के तौर पर पेश नहीं किया जाता है तो फिर मोदी और अमित शाह के लिए यहां रास्ता खुल जायेगा और एक तरह से मध्यप्रदेश में भी उनका पूरा नियंत्रण हो जाएगा.

क्या है अमित शाह का चुनावी प्लान

4 मई को भोपाल में प्रदेश भर से आये कार्यकर्ताओं को संबोधित करते हुए अमित शाह ने जो बातें कही थीं उससे यह बात समझ आती है कि इस बार चुनाव के दौरान शिवराज को फ्री हैण्ड नहीं मिलने वाला है और इस पर असली नियंत्रण अमित शाह का रहेगा. पार्टी उन्हीं की रणनीति पर भाजपा चुनाव लड़ेगी.

दूसरे शब्दों में कहें कि इस बार मध्य प्रदेश में कांग्रेस का मुकाबला शिवराज से नहीं मोदी और अमित शाह से होगा और सिंधिया या कमलनाथ की जगह राहुल गांधी को सामने आने के लिए उकसाया जायेगा जिससे मामला मोदी बनाम राहुल का बन सके यह एक मास्टर प्लान है जिसमें इस एक तीर से दो शिकार किए जाएंगें, पहला तो यह कि एक ही चेहरे से उपजे ऊब से ध्यान हटाया जा सकेगा और दूसरा बहुत ही निर्बाध तरीके से शिवराज से उनकी जमीन छीन ली जाएगी.

मास्टर प्लान की दूसरी कड़ी

दूसरा गेमप्लान माइक्रो लेवल बूथ मैनेजमेंट का है जिसमें अमित शाह को महारत हासिल है. इस बार मध्यप्रदेश में भाजपा बूथ स्तर पर सबसे ज्यादा ध्यान देने जा रही है. मध्य प्रदेश में भाजपा संगठन बहुत मजबूत है. भाजपा दावा करती है कि यहां उसके 65 लाख सक्रिय सदस्य है, योजना इन्हें ही सक्रिय करने की है जिसके तहत कर्नाटक के तर्ज पर मध्य प्रदेश में भी बूथ स्तर पर अर्द्ध पन्ना प्रमुख (हाफ पेज प्रभारी) नियुक्ति करने की योजना है.

इस फॉर्मूले के तहत मतदाता सूची के प्रत्येक आधे पन्ने में जितने वोटर आते हैं उनसे हाफ पेज को संपर्क में रहना होता है और इनमें से भी खास उन मतदातों पर फोकस करना होता है जो भाजपा के परम्परागत वोटर नहीं हैं. मध्य प्रदेश में करीब 65200 पोलिंग बूथ हैं इस हिसाब से 35 लाख हाफ पेज प्रभारियों की जरूरत पड़ेगी.

Image source: mpcongress.org
Image source: mpcongress.org

दिग्विजय सिंह के बहाने निशाने पर कांग्रेस

अमित शाह का तीसरा गेम प्लान दिग्विजय सिंह के भूत को वापस लाकर शिवराज सरकार की नाकामियों पर परदा डालने का है. जिसके तहत भाजपा के 15 साल के शासनकाल के मुकाबले 2003 तक के ‘दिग्विजय शासन काल’ को सामने रखकर चुनाव लड़ने की रणनीति अपनाई जाएगी. कार्यकर्ता सम्मलेन के दौरान अमित शाह भाजपा के कार्यकर्ता को यह निर्देश दे चुके हैं कि वे गांव-गांव जाकर 2003 से पहले दिग्विजय काल” के समय राज्य की स्थितियों और आज की स्थितियों का तुलनात्मक ब्यौरा दें.

कार्यकर्ता सम्मलेन के दौरान 2003 और 2018 के तुलनात्मक विकास का ब्यौरा देने वाली प्रदर्शनी भी लगाई गई थी और अब चुनाव के दौरान जारी होने वाले प्रचार सामग्रियों में भी भाजपा द्वारा अपने 15 साल की उपलब्धियों के साथ ‘दिग्विजय शासन काल’ की तुलना पेश की जाएगी. दरअसल, अपने उपलब्धियों को बताने के बजाये खुद को विपक्ष में पेश करते हुए विपक्ष पर ही सवाल उठाना उसकी खामियों को गिनना मोदी और अमित शाह का पुराना नुस्खा है जिसे वे गुजरात के समय से ही सफलतापूर्वक उपयोग लाते रहे हैं.

कांग्रेस हुई अलर्ट

शायद कांग्रेस को भी भाजपा के इस गेमप्लान का अंदाजा हो गया है इसलिये नर्मदा यात्रा से वापस लौटने के बाद दिग्विजय सिंह ने जो राजनीतिक यात्रा शुरू करने का ऐलान किया था उसे रद्द कर दिया गया है. इस सम्बन्ध में दिग्विजय सिंह ने कहा है कि “मैं विधानसभा वार यात्रा निकालने वाला था लेकिन अब मैं जिलों में बैठकें और चर्चा करुंगा.” जाहिर है मध्य प्रदेश को चौथी बार फतह करने के लिये भाजपा की तरफ से अमित शाह का ताजा गेमप्लान तैयार है जिसे भेद पाना कांग्रेस के लिए आसान नहीं होगा.

(इस लेख के विचार पूर्णत: निजी हैं. India-reviews.com इसमें उल्लेखित बातों का न तो समर्थन करता है और न ही इसके पक्ष या विपक्ष में अपनी सहमति जाहिर करता है. यहां प्रकाशित होने वाले लेख और प्रकाशित व प्रसारित अन्य सामग्री से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है. आप भी अपने विचार या प्रतिक्रिया हमें editorindiareviews@gmail.com पर भेज सकते हैं.)

By जावेद अनीस

वरिष्ठ स्तंभकार

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