Mon. Apr 29th, 2024
cloudburst

केदारनाथ, अमरनाथ में बादल फटने (Cloudburst) की घटना आपने देखी होगी. इसके अलावा भी कई जगह पर बादल फटने से भारी नुकसान होता है. बादल फटने की (Badal Fatna Kya hai?) वजह से आर्थिक नुकसान तो होता ही है साथ ही लोगों की जान भी चली जाती है. 

बादल फटने की घटनाएं आमतौर पर पहाड़ी क्षेत्रों में देखी जाती है. बादल फटना एक प्राकृतिक घटना है और इसके पीछे के कारण को भी हम समझ नहीं पाते हैं. 

बादल फटना क्या है? (What is Cloudburst?) 

बादल फटना यही नाम हम बचपन से अभी तक सुनते आ रहे हैं और इसे सुनकर ऐसा लगता है जैसे मानों बादल का कोई टुकड़ा आकर कहीं एकदम से गिर गया हो. लेकिन ऐसा नहीं है. बादल फटने का मतलब कुछ और होता है. 

बादल फटने का मतलब होता है (meaning of cloudburst) अचानक से किसी स्थान पर बहुत तेज बारिश हो जाना. अब तेज का मतलब आपके शहर में होने वाली तेज बारिश नहीं बल्कि उससे भी काफी ज्यादा. इतनी ज्यादा बारिश की एक से दो घंटे में 20 से 30 वर्ग किमी जगह को पूरी डूबा दे. 

किसी तेज बारिश को बादल फटना तब माना जाता है जब वो बारिश एक घंटे में 100 MM या उससे ज्यादा हो. किसी स्थान पर 100 MM बारिश के होने का मतलब होता है एक मीटर लंबी और चौड़ी जगह में 100 लीटर पानी का गिरना. 

जब इतना पानी कई किमी जगह में एक साथ गिरता है तो आप अंदाजा नहीं लगा सकते कि वहाँ कितना पानी बरसा होगा. अगर एक वर्ग किमी जगह में ही 100 MM वर्षा हो जाए तो वहाँ एक घंटे में 10 करोड़ लीटर पानी बरस जाएगा. अब आप सोचिए कि यदि यही पानी 30 वर्ग किमी में बरसे तो कितना होगा.  

बादल कब और कहाँ फटते हैं? (Why does a cloudburst happen?)

बादल फटने की घटना आमतौर पर मानसून के मौसम में देखी गई है. भारत में ये घटना आमतौर पर जुलाई से अक्टूबर-नवंबर तक देखी गई है. बादल फटने की घटना उत्तराखंड और हिमाचल प्रदेश में ज्यादा देखने को मिलती है. 

साल 2013 में उत्तराखंड के रुद्रप्रयाग में बादल फटने की घटना को सबसे बड़ी प्राकृतिक आपदा में से एक बताया जाता है. इसमें 5000 लोगों की मौत हो जाने की बात कही जाती है. 

भारत में बादल फटने की घटना हिमालय के आसपास वाले इलाकों में देखी गई है. यहाँ हिमालय के आसपास ऊंचे क्षेत्रों में बादल ज्यादा फटते हैं.  

बादल फटने के कारण? (Reason of Cloudburst) 

बादल फटने के कारण को जानने के लिए पहले हम ये जानते हैं कि बारिश कैसे होती है. हम सभी ने स्कूल में पढ़ा है कि समुद्र सूरज की गर्मी से भाप बनाता है जो बादल बनते हैं.  ये बादल हवाओं के साथ बहकर जमीन वाले एरिया पर आते हैं. 

जब ये धरती पर आते हैं तो हम कहते हैं कि मानसून आ गया. गर्मी के कारण बादल हल्के होते हैं लेकिन जब ये धरती पर आते हैं और ठंडे होते हैं तो ये बादल बूंदों में बदलने लगते हैं, इसे ही बारिश कहते हैं. 

दूसरी ओर भारत में जो मानसून आता है वो दक्षिण राज्यों से आता है. मानसून के रूप में ये बादल हिमालय तक जाते हैं और वहाँ इकट्ठा हो जाते है क्योंकि हिमालय काफी ऊंचा क्षेत्र है. ये बादल हिमालय से टकराकर भारी मात्रा में एक जगह पर जमा हो जाते हैं. इसमें एक समय ऐसा आता है जब ये किसी इलाके पर मंडराते हुए किसी पानी से भरी थैली की तरह फट जाते हैं. 

इस घटना को ही ‘बादल का फटना’ कहते हैं. 

तेज बारिश और बादल फटने में क्या अंतर है? (Difference between cloudburst & heavy rain?) 

तेज बारिश और बादल फटने में जमीन आसमान का अंतर है. तेज बारिश का मतलब ये हो सकता है कि किसी स्थान पर बहुत ज्यादा पानी गिरा हो. लेकिन वो बारिश कितने घंटे में हुई और कितना पानी गिर इस पर निर्भर होती है. तेज बारिश में एक दम से 100 MM बरसात नहीं होती है. 

बादल फटने का मतलब होता है कि एकदम से बहुत तेज पानी गिर जाना. जैसे ऊपर से किसी ने एकदम से बहुत सारा पानी छोड़ दिया हो, जो आपके या किसी के भी नियंत्रण से बाहर हो. आमतौर पर 100 MM से ज्यादा बारिश को बादल फटने की श्रेणी में माना जाता है. 

बादल फटने की प्रमुख घटनाएं (Important Cloudburst Accident in India) 

भारत में बादल फटने की घटना कई बार हो चुकी हैं. इनमें से प्रमुख घटनाएं हैं. 

– 28 सितंबर 1908 को बादल फटने के कारण मुसी नदी पर बाढ़ आ गई थी, जिस वजह से करीब 15 हजार लोग मारे गए थे. 

– 15 अगस्त 1997 को हिमाचल प्रदेश के शिमला के चिरगाव में बादल फटने से 115 लोगों की मौत हुई थी. 

– 17 अगस्त 1998 को मालपा गाँव में बादल फटने और भूस्खलन की वजह से 250 लोगों की मौत हुई थी. 

– 6 जुलाई 2004 को बद्रीनाथ में बादल फटने से 17 लोग मारे गए थे. 

– 16 अगस्त 2007 को हिमाचल प्रदेश के घनवी में बादल फटने के कारण 52 लोगों की मौत हुई थी. 

– 6 अगस्त 2010 को जम्मू कश्मीर के लेह में  बादल फटने के कारण 179 लोगों की मृत्यु हुई थी. 

– सितंबर 2010 में  उत्तराखंड के अल्मोड़ा में बादल फटने से दो गाँव डूब गए थे, जिसमें काफी कम लोग ही बच पाए थे. 

– जून 2013 को उत्तराखंड के केदारनाथ में बादल फटने से भीषण त्रासदी हुई थी. इसमें करीब 5 हजार लोगों की मौत हुई थी. 

– जुलाई 2022 में ही अमरनाथ गुफा के पास बादल फटने से कई लोगों को मौत हो गई थी. 

बादल फटना एक प्राकृतिक घटना है लेकिन इसका असर सभी पर होता है. ये एक ऐसी घटना है जो सभी के नियंत्रण से बाहर है. कभी-कभी लोगों के लिए इसके प्रकोप से बच पाना भी नामुमकिन हो जाता है.  

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