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Ashwamedh Yagya : अश्वमेध यज्ञ क्या होता है, आखिरी अश्वमेध यज्ञ किसने करवाया था? 

वेदों में अश्वमेध यज्ञ का उल्लेख मिलता है. आपने कई धार्मिक सीरियल देखे होंगे जिनमें राजा द्वारा अश्वमेध यज्ञ (Ashwamedh Yagya) करवाया जाता था. वैदिक काल से लेकर लंबे समय तक अश्वमेध यज्ञ एक महत्वपूर्ण यज्ञ हुआ करता था. अश्वमेध यज्ञ हमेशा से ही भारत की संस्कृति का हिस्सा रहा है. 

अश्वमेध यज्ञ क्या होता है? (What is Ashwamedh Yagya?) 

वैदिक काल से ही अश्वमेध यज्ञ को एक महत्वपूर्ण यज्ञ माना जाता है. अश्वमेध यज्ञ में अश्व का मतलब घोड़ा तथा मेध का मतलब बलि होता है. अश्वमेध यज्ञ एक प्रतापी राजा द्वारा करवाया जाता था जो चक्रवर्ती सम्राट बनना चाहता हो. 

अश्वमेध यज्ञ में सम्राट द्वारा एक घोड़ा छोड़ा जाता था. इस घोड़े के पीछे राजा की सेना भी होती थी. वो घोड़ा जहां-जहां भी जाता था वो भूमि राजा के अधीन आ जाती थी. अगर घोडा किसी राज्य में चला गया तो वो राज्य भी उस राजा के अधीन आ जाएगा जिसने अश्वमेध यज्ञ करवाया था.  

अश्वमेध यज्ञ किसने करवाया था? (Ashwamedh Karane wale Raja) 

अश्वमेध यज्ञ अभी तक कई राजाओं के द्वारा करवाया जा चुका है. इसका उल्लेख रामायण और महाभारत जैसे ग्रंथों में भी मिलता है. बताया जाता है कि लंका पर विजय के बाद श्रीराम द्वारा अश्वमेध यज्ञ करवाया गया था वहीं महाभारत का युद्ध जीतने के बाद पांडवों द्वारा अश्वमेध युद्ध करवाया गया था. 

अश्वमेध यज्ञ का उल्लेख द्वितीय शती ईसा पूर्व के इतिहास में भी मिलता है. उस समय शुंग वंश के ब्राहमण नरेश पुष्यमित्र ने दो बार अश्वमेध यज्ञ करवाया था. इनके बाद गुप्त सम्राट समुद्रगुप्त ने भी चौथी सदी में अश्वमेध यज्ञ करवाया था.  

अश्वमेध यज्ञ कौन करवाता था? 

अश्वमेध यज्ञ एक बहुत ही प्राचीन परंपरा रही है. इसे प्रतापी राजा ही करवाते थे. इसे करवाने वाले ऐसे राजा होते थे जो काफी शक्तिशाली होते थे और जिन्हें अपनी सेना पर पूरा भरोसा होता था. वे अपने राज्य विस्तार के लिए तथा सम्पूर्ण पृथ्वी को एक ही राज्य बनाने के लिए अश्वमेध यज्ञ का आयोजन करते थे.

अश्वमेध यज्ञ एक साल से भी ज्यादा समय तक चलता था. अश्वमेध यज्ञ करवाने वाले राजा की सेना काफी ताकतवर होती थी. जहां भी यज्ञ का अश्व जाता था वहाँ के राजा को उस प्रतापी राजा की अधीनता स्वीकार करनी पड़ती थी.  

अश्वमेध यज्ञ कैसे कराया जाता था? (How does ashwamedh yagya?) 

अश्वमेध यज्ञ का आयोजन कोई छोटा-मोटा आयोजन नहीं था बल्कि एक विशाल आयोजन होता था. जिस राजा को भरोसा होता था कि वो सम्पूर्ण भारत विजय कर सकता है वही इसका आयोजन करता था. 

उस समय में अश्वमेध यज्ञ से पहले काफी सारे धार्मिक अनुष्ठान किए जाते थे. उसके बाद अश्वमेध यज्ञ शुरू किया जाता था. जहां पर ये होता था उस राज्य में माहौल किसी धार्मिक मेले जैसा होता था. 

इसमें एक अश्व के सिर पर एक विजय पत्र लिखकर उसे छोड़ा जाता था. उस विजय पत्र में ये लिखा होता था कि ये किस राज्य का अश्व है और वो जहां जाएगा वो भूभाग उस राज्य का हो जाएगा. मतलब उस राज्य के राजा को अश्वमेध यज्ञ करवाने वाले राजा की अधीनता स्वीकार करनी पड़ेगी. 

अगर कोई राजा अधीनता को स्वीकार नहीं करना चाहता है तो उसे राजा की सेना से युद्ध करना पड़ता था. युद्ध के पश्चात जो भी परिणाम हो उसके हिसाब से अश्वमेध यज्ञ आगे चलता था. 

किसी राजा को यदि अधीनता स्वीकार नहीं होती थी तो वो उस अश्व को बंदी बना लेते थे या गायब कर देते थे. ऐसे में राजा की सेना उस अश्व को युद्ध करके छुड़ाती थी और फिर वो सारा राज्य उस राजा का हो जाता था जिसने अश्वमेध यज्ञ करवाया था. 

यदि किसी कारण घोड़े की मृत्यु हो जाती है तो उसके स्थान पर दूसरे घोड़े को रखकर अश्वमेध यज्ञ आगे बढ़ाया जाता था.  

आखिरी अश्वमेध यज्ञ किसने करवाया था? (Last ashwamedh yagya on earth) 

आज के समय में कोई अश्वमेध यज्ञ देखने को नहीं मिलता है लेकिन क्या आप जानते हैं कि आखिरी अश्वमेध यज्ञ आज से करीब 294 साल पहले जयपुर के राजा सवाई जयसिंह द्वितीय ने करवाया था. ये इस संसार का अंतिम अश्वमेध यज्ञ था. यह यज्ञ सवा साल तक चला था. इस यज्ञ के पूरा होने तक करीब 3 करोड़ लोगों को भोजन कराया गया था.  

अश्वमेध यज्ञ को चक्रवर्ती सम्राट बनने के लिए किया जाता था. लेकिन कहा जाता है कि इसे ब्रह्म हत्या के पाप से मुक्ति के लिए और स्वर्ग एवं मोक्ष प्राप्ति के लिए किया जाता था.  

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By पंडित नितिन कुमार व्यास

ज्योतिषाचार्य पंडित नितिन कुमार व्यास मध्य प्रदेश के बुरहानपुर में रहते हैं. वे पिछले 35 सालों से ज्योतिष संबंधी परामर्श और सेवाएं दे रहे हैं.

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