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खो-खो (Kho-kho) भारत का एक प्राचीन खेल है और इसे लेकर भारत में कई तरह की प्रतिस्पर्धाएं होती रहती है. बचपन में आपने भी खो-खो खेला होगा. खो-खो खेलने के लिए इसके नियमों (Kho kho rules) की जानकारी होना जरूरी है. इसके साथ ही आपको खो-खो के मैदान की भी जानकारी होनी चाहिए. खो-खो के बारे में (about kho kho) माना जाता है की इसकी उत्पत्ति महाराष्ट्र में हुई थी. साल 1914 में डेकन जिमख़ाना पूना द्वारा इस खेल के शुरुवाती नियमों का प्रतिपादन किया गया था.

खो-खो खेल मैदान की जानकारी (Kho kho ground measurement)

खो-खो मैदान की लंबाई 29 मीटर तथा चौड़ाई 16 मटर होती है. इस मैदान के अंत में 16 x 2.75 मीटर के दो आयताकार होते हैं. मैदान के बीच में 23.5 मीटर लंबी और 30 सेमी चौड़ी पट्टी होती है. पट्टी के प्रत्येक सिरे पर लकड़ी का पोल होता है. इसमें 30 सेमी x 30 सेमी के 8 वर्ग होते हैं.

खो-खो कैसे खेलते हैं? (How to play kho-kho)

खो-खो दो टीमों के मध्य में खेला जाता है. प्रत्येक टीम में 9 खिलाड़ी होते हैं तथा 3 अतिरिक्त खिलाड़ी होते हैं जो दूसरे खिलाड़ी का स्थान ले सकते हैं. इसके एक मैच में चार पारी होती है. प्रत्येक पारी के लिए 7 मिनट तय होते हैं. प्रत्येक टीम दो पारियों में बैठती है और दो पारियों में दौधती है. बैठने वाली टीम के खिलाड़ी को चेंजर व दौड़ने वाले खिलाड़ी को रनर कहते हैं.

खेल की शुरुवात में तीन खिलाड़ी सीमा के अंदर होते हैं. इन तीनों के आउट होने पर दूसरे तीन खिलाड़ी अंदर आते हैं और खेलते हैं. चेंजर टीम के आठ खिलाड़ी 30×30 सेमी वर्ग में बैठते हैं और नौवा खिलाड़ी रनर्स को पकड़ने के लिए खड़ा होता है. वह दौड़कर रनर टीम के एक खिलाड़ी को पकड़ने की कोशिश करता है. वह बैठे हुए खिलाड़ियों में से किसी एक को खो देता है दूसरा खिलाड़ी खो मिलने के बाद उठकर रनर को पकड़ता है ततः उसका स्थान पहले वाला खिलाड़ी ले लेता है.
इस प्रक्रिया में अगर चेंजर टीम का खिलाड़ी रनर टीम के दौड़ने वाले खिलाड़ी को छु लेता है तो चेंजर टीम को एक अंक प्राप्त हो जाता है. खेल के अंत में अधिक अंक अर्जित करने वाली टीम विजयी घोषित की जाती है.

खो-खो के नियम (Kho kho rules)

– खो-खो में खेलने के दौरान कौन बैठेगा और कौन दौड़ेगा इसका निर्णय टॉस के द्वारा किया जाता है.
– दौड़ते समय यदि रनर के पाँव सीमा के बाहर चले जाते हैं तो उसे आउट माना जाता है.
– बैठने वाले खिलाड़ियों का मुंह अपने पास वाले खिलाड़ी के विपरीत दिशा में होता है.
– रनर टीम का खिलाड़ी केंद्र गली से दूसरी दिशा में तब तक नहीं जा सकता, जब तक की वह पोल के चरो ओर घूम नहीं लेता.
– चेंजर टीम दौड़ने वाला खिलाड़ी बैठे हुए खिलाड़ी के पास जाकर पीछे से ऊंची आवाज में उसे ‘खो’ बोलता है. इसे ‘खो’ देना कहा जाता है. कोई भी खिलाड़ी ‘खो’ के लिए बिना उठकर भाग नहीं सकता.
– ‘खो’ लेकर दौड़ने वाला खिलाड़ी उठता है, अपनी दिशा का चुनाव करता है तथा उस दिशा में दौड़ने लगता है.
– खो मिलने के बाद वही खिलाड़ी उठकर दौड़ता है तथा उसके स्थान पर खो देने वाला खिलाड़ी बैठ जाता है.
– खो लेने के बाद अगर उठने वाला खिलाड़ी सेंटर लाइन की क्रॉस कर जाता है तो उसे फ़ाउल माना जाता है.
– यदि अंक बराबर हो तो एक अतिरिक्त पारी का आयोजन किया जाता है.
– अगर कोई खिलाड़ी घायल हो जाए तो उसके स्थान पर स्थानापन्न खिलाड़ी में से किसी एक को नियुक्त कर दिया जाता है.

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