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achla saptami 2023

अचला सप्तमी (Achla Saptami Vrat Katha) माघ माह में आने वाला प्रमुख त्योहार है. माघ माह साल 2023 में जनवरी में आ रहा है और अचला सप्तमी जनवरी में आने वाला प्रमुख व्रत एवं त्योहार है. अचला सप्तमी का संबंध सूर्य देव से है और इसे रथ सप्तमी, सूर्य सप्तमी या आरोग्य सप्तमी भी कहा जाता है.

अचला सप्तमी कब है? (Achala Saptami kab hai?)

अचला सप्तमी हिन्दू पंचांग के हिसाब से माघ महीने के शुक्ल पक्ष को आने वाली सप्तमी को मानी जाती है. साल 2023 में अचला सप्तमी 28 जनवरी, शनिवार को आ रही है.

अचला सप्तमी का दिन सूर्य देव को समर्पित होता है. इस पूरे सौरमण्डल में सूर्य ही है जो सभी ग्रहों को ऊर्जा देने का कार्य करता है. सूर्य के कारण ही पृथ्वी पर प्रकृति है, जीवन है. सूर्य ही हमें ऊर्जा देता है और हमारे रोगों को दूर करता है. ऐसा माना जाता है कि जो व्यक्ति सच्चे मन से अचला सप्तमी का व्रत करता है और इस दिन सूर्य देव की आराधना करता है उसे किसी भी प्रकार के रोग से मुक्ति मिल जाती है.

अचला सप्तमी का महत्व (Achla Saptami Mahatva) 

एक मनुष्य के लिए सबसे कीमती चीज होती है उसका शरीर. इस शरीर में यदि कोई रोग हो जाए, कोई कष्ट आ जाए तो सभी चीजें फीकी पड़ जाती है. वैसे कहा भी गया है कि ‘पहला सुख निरोगी काया’. हमें एक अच्छा जीवन पाने के लिए एक निरोगी शरीर आवश्यक होता है तभी हम इस जीवन का आनंद ले पाते हैं.

शरीर में कोई भी रोग हो वो हमें बहुत कष्ट पहुंचाता है. उसके आगे पैसा, रिश्तेदार कोई कुछ नहीं लगता. यदि किसी व्यक्ति को निरोगी काया का वरदान चाहिए तो उसे सूर्यदेव की आराधना अवश्य करना चाहिए. सूर्य ऊर्जा के देवता है और जिन भक्तों पर सूर्य देव की कृपा हो जाती है उनके गंभीर से गंभीर रोग भी दूर भाग जाते हैं.

अचला सप्तमी सालभर में आने वाला एक विशेष दिन है जो पूरी तरह सूर्यदेव को समर्पित होता है. ऐसा माना जाता है कि इस दिन सूर्य देव ने अपनी किरणों से पृथ्वी को प्रकाशित किया था. इसलिए प्रत्येक वर्ष इस दिन को अचला सप्तमी या सूर्य सप्तमी के रूप में मनाया जाता है.

अचला सप्तमी व्रत कथा (Achala Saptami Vrat Katha)

अचला सप्तमी की कथा के अनुसार श्रीकृष के पुत्र शांब के मन में अपने शारीरिक बाल और क्षमता को लेकर अभिमान आ चुका था. एक बार जब ऋषि दुर्वासा लंबे समय तक तप करने के बाद श्रीकृष्ण से मिलने के उद्देश्य से उनके पास गए तो ऋषि दुर्वासा का शरीर बहुत दुर्बल और कमजोर हो गया था जिसे देखकर शांब जोर-जोर से हंसने लगे.

ऋषि दुर्वासा ने अपना अपमान देखा तो वो बहुत क्रोधित हुए और उन्होंने शांब को इसके लिए श्राप दिया कि वो कुष्ठ रोग से पीढ़ित हो जाए और उसका अहंकार टूट कर चूर-चूर हो जाए. श्राप के कारण ऐसा ही हुआ. शांब को कुष्ठ रोग हो गया और उसका अहंकार भी टूट कर चूर चूर हो गया.

भगवान कृष्ण ने जब शांब को इस स्थिति में देखा तो उसे सूर्य देव की पूजा करने के लिए कहा. शांब ने ऐसा ही किया और सूर्य देव की पूजा करना आरंभ कर दिया. वह प्रतिदिन भगवान सूर्य की पूजा करता था. उसने ऐसा माघ माह की शुक्ल पक्ष के सप्तमी तक किया. उस दिन उसे अपने श्राप से मुक्ति मिल गई और उसे पहले जैसा शरीर प्राप्त हो गया.

जिस तरह शांब को कुष्ठ रोग से सूर्य देव ने मुक्ति दिलाई, ठीक उसी तरह सूर्य देव अपने भक्तों के सभी रोग दुर करते हैं और उनके शरीर में ऊर्जा का संचार करते हैं.

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By पंडित नितिन कुमार व्यास

ज्योतिषाचार्य पंडित नितिन कुमार व्यास मध्य प्रदेश के बुरहानपुर में रहते हैं. वे पिछले 35 सालों से ज्योतिष संबंधी परामर्श और सेवाएं दे रहे हैं.

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