Sat. Apr 27th, 2024

ज्योतिष में शनि ग्रह का महत्व और कुंडली के 12 भावों में शनि का महत्व

हमारा वर्तमान जीवन हो या भविष्य की बात हो. हर जगह पर ग्रहों की चाल हमारा मिजाज निर्धारित करती है. ज्योतिष के अनुसार नवग्रह हैं जिनमें से एक ग्रह शनि है. शनि का नाम सुनते ही कई लोग डरने लगते हैं और ये कल्पना करते हैं की शनि उनकी ज़िंदगी से दूर ही रहे तो अच्छा है. हालांकि ज़िंदगी में कभी न कभी शनि आपसे टकराता जरूर है.

शनि ग्रह

सौरमंडल का एक सबसे अलग ग्रह है शनि जिसके चारो ओर एक छल्लानुमा आकृति है. शनि को ज्योतिष में न्याय का देवता और कर्म का फल दाता कहा जाता है. यानि जैसे आपने कर्म किए है उसके अनुसार शनि आपको फल देता है. शनि प्रत्येक राशि में कम से कम ढाई साल तक रहता है. और ये किसी भी ग्रह का एक राशि में रहने का लंबा समय है.

शनि का महत्व

शनि को ज्योतिष में न्याय का देवता कहा जाता है. ये एक ऐसा ग्रह है जो आपको कर्म का फल देने का काम करता है. इसे आयु, दुख, तकनीकी का कारण माना जाता है. इसकी स्वामी राशियाँ कुम्भ व मकर हैं. शनि की उच्च राशि तुला है और निम्न राशि मेष है. शनि की दशा साढ़े सात साल तक चलती है. अगर किसी राशि में शनि उच्च स्थान पर हो तो वह उसे रंक से राजा बना सकता है.

शनि का प्रभाव

शनि आपकी ज़िंदगी के कई सारे पहलुओं को निर्धारित करता है. इसका सबसे प्रमुख कार्य आपकी बौद्धिक क्षमता को बढ़ाना और घटाना होता है जिसका उपयोग आप ज़िंदगी में आगे बढ़ने के लिए करते हैं. शनि कई बार आपको आलसी और हीन मानसिकता वाला व्यक्ति बना सकता है. इसके आगमन से आप न्यायप्रिय, कर्मठ, कर्मशील बन सकते हैं. अगर आप शनि से पीड़ित रहते हैं तो आपके साथ दुर्घटना और न्यायिक परेशानियाँ हो सकती हैं. कई बार जेल जाने की नौबत भी आ सकती है.

कुंडली के 12 भावों में शनि का प्रभाव

कुंडली के पहले भाव में शनि का प्रभाव : शनि यदि पहले स्थान पर हो तो ये कई लोगों के लिए शुभ नहीं होता है. ये आपको बुरे फल दे सकता है जैसे गरीबी, रोगी या कोई बुरे कर्मों के जाल में फंसाना. लेकिन अगर ये आपको अच्छे फल देगा तो आप राजा जैसा जीवन व्यतीत कर सकते हैं.

कुंडली के दूसरे भाव में शनि का प्रभाव : शनि के दूसरे स्थान पर होने से आप एक अच्छे स्त्रोत से कमाई नहीं कर पाते. आप ऐसे स्त्रोत से कमाई करते हैं जिन्हें समाज में अच्छा नहीं माना जाता. आपके पास धन की कमी रहती है और आप आँख की परेशानियों से जूझते रहते हैं.

कुंडली के तीसरे भाव में शनि का प्रभाव : तीसरे स्थान पर शनि होने से आप बुद्धिमान और उदार बनते हैं. आपको भरपूर मात्रा में स्त्री सुख मिलता है. आप स्वभाव से आलसी होते हैं जिस कारण आपके बनते हुए काम रुक जाते हैं. भाग्य आपका आसानी से साथ नहीं दे पाता.

कुंडली के चौथे भाव में शनि का प्रभाव : शनि के चौथे घर में होने के कारण आप घर की जिम्मेदारियों को ठीक से नहीं उठा पाते. आपके माता-पिता से अच्छे संबंध नहीं रहते हैं और इस कारण घर में अनबन बनी रहती है.

कुंडली के पांचवे भाव में शनि का प्रभाव : पांचवे घर में शनि आपके प्रेम संबंध बनवाता है. ये आपको आपके परिवार से अलग-अलग रखता है. आप गलत रास्तों पर चल पड़ते हैं.

कुंडली के छठे भाव में शनि का प्रभाव : छठे घर में होने से आप परिश्रम करने वाले, सुंदर और साहसी होते हैं. इस स्थिति में शनि आपको रोग और ऋण से पीड़ित करता है. आपको शत्रुओं का भय लगा रहता है.

कुंडली के सातवे भाव में शनि का प्रभाव : कुंडली के इस भाव में शनि का होना आपको रोगी बनाता है. आपके पास पैसों की कमी रहेगी और आप गलत कामों में मेहनत करते रहेंगे. जीवन साथी से भी वियोग होने की संभावना रहती है.

कुंडली के आठवे भाव में शनि का महत्व : आपको त्वचा संबंधी बीमारियाँ हो सकती है. आपकी आयु अधिक हो सकती है. शनि की ये स्थिति आपको दार्शनिक बनती है. आप आध्यात्मिक विषयों पर अच्छे वक्ता बन सकते हैं.

कुंडली के नौवे भाव में शनि का प्रभाव : नौवे भाव में शनि अशुभ होता है. ये आपको अधर्मी, गरीब और पुत्रहीन बनाता है. अगर शनि वक्री हुआ तो ये आपको पूर्वजों से धन प्राप्ति भी करवा सकता है.

कुंडली के दसवे भाव में शनि का प्रभाव : शनि का दसवे घर में होना आपको धार्मिक प्रवृत्ति देता है. आप किसी ऊंचे पद पर भी बैठ सकते हैं.

कुंडली के ग्यारहवे भाव में शनि का प्रभाव : ये आपको लंबी उम्र देता है. इसके अलावा ये आपको चापलूसी का गुण देता है तथा किसी प्रभावशाली व्यक्ति के बहुत करीबी बनाता है.

कुंडली के बारहवे भाव में शनि का प्रभाव : इस भाव में शनि की उपस्थिती आपके मन को अशांत करती है. आप कुटिल, चालक और तीखी नजर वाले व्यक्ति होते हैं. आपमें दया नाम की चीज नहीं होती और आप व्यर्थ में धन बर्बाद करते रहते हैं.

शनि के उपाय

यदि आप पर शनि की ढैया या साढ़ेसाती चल रही है तो आप शमी के वृक्ष की जड़ को काले कपड़े में पिरोकर शनिवार की शाम दाहिने हाथ में बांधे तथा ॐ प्रां प्रीं सः शनिश्चराय नमः मंत्र का जाप करें.

शनि के दोषो को दूर करने के लिए शिव की उपासना एक सिद्ध उपाय है. नियम पूर्वक सहस्त्रनाम या शिव के पंचाक्षरी मंत्र का पाठ करें.

कुंडली में शनि के दोषों को दूर करने के लिए सुंदरकाण्ड का पाठ करें और अपनी क्षमता अनुसार हनुमानजी को कुछ मीठा चड़ाएं.

शनिदेव को समर्पित इस मंत्र का जाप करें “सूर्य पुत्रो दीर्घ देहो विशालाक्षः शिव प्रियः, मंदाचारह प्रसन्नात्मा पीड़ा दहतु में शनिः.”

शनि देव को प्रसन्न करने के लिए शमी का वृक्ष अपने घर में लगाए और शनिदेव को तिल का तेल चढ़ाये.

यंत्र : शनि यंत्र

मंत्र : ॐ शं शनैश्चराय नमः

रत्न : नीलम

रंग : काला

यह भी पढ़ें :

ज्योतिष में सूर्य ग्रह का महत्व और कुंडली के 12 भावों में सूर्य का महत्व

ज्योतिष में चन्द्र ग्रह का महत्व और कुंडली के 12 भावों में चन्द्र का महत्व

ज्योतिष में मंगल ग्रह का महत्व और कुंडली के 12 भावों में मंगल का महत्व

ज्योतिष में बुध ग्रह का महत्व और कुंडली के 12 भावों में बुध का फल

ज्योतिष में गुरु ग्रह का महत्व और कुंडली के 12 भावों में गुरु का फल

ज्योतिष में शुक्र ग्रह का महत्व और कुंडली के 12 भावों में शुक्र का फल

ज्योतिष में राहु ग्रह का महत्व और कुंडली के 12 भावों में राहु का महत्व

ज्योतिष में केतु ग्रह का महत्व और कुंडली के 12 भावों में केतु का महत्व

By पंडित नितिन कुमार व्यास

ज्योतिषाचार्य पंडित नितिन कुमार व्यास मध्य प्रदेश के बुरहानपुर में रहते हैं. वे पिछले 35 सालों से ज्योतिष संबंधी परामर्श और सेवाएं दे रहे हैं.

Related Post

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *